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चमत्कारिक तेल

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : निरोगी दुनिया प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :252
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9417
आईएसबीएन :9789385151071

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काजू का तेल


काजू के विभिन्न नाम

हिन्दी- काजू, संस्कृत- काजूत, काजूतक, बंगला-हिजली बादाम, मराठीकाजू, गुजराती- काजू, मारवाड़ी- काजू गुली, फारसी- बादामे फिरंगी, अंग्रेजी-Cashew nut (केश्यू नट), लेटिन– एनाकार्डियम ऑक्सीडेंटेल (Anacardium occidentale)

यह वृक्ष वनस्पति जगत के एनाकार्डिएसी (Anacardiaceae) कुल में आता है।

काजू के वृक्ष अमेरिका के मूल निवासी हैं। भारत में लगभग 400 वर्ष पूर्व इन्हें ब्राजील से पुर्तगालियों के द्वारा लाया गया था। दक्षिण भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेशों में, गोवा, कोचीन, मुम्बई, कनाड़ा (दक्षिणी), ट्रावन्कोर, मद्रास, मैसूर आदि में इसके वृक्ष बहुतायत से मिलते हैं।

काजू के वृक्ष 35-40 फीट तक ऊंचे तथा यह सदाबहार होते हैं। इसकी शाखायें आम्र वृक्ष की भांति चारों ओर फैली रहती हैं। पत्तियां 4 से 8 इंच तक लम्बी तथा 3 से 5 इंच तक चौड़ी होती हैं। पुष्प पीले रंग के होते हैं जिन पर लाल-लाल दाग होते हैं। इनमें सुगंध होती है। काजू के वृक्ष 3 वर्ष के पश्चात् फल देने लगते हैं किन्तु वृक्ष लगाने के 10 से 20 वर्षों के बीच इसके फल अत्यधिक मात्रा में आते हैं। इनका थैलेमस मांसल होता है। इसे पकने पर खाया जाता है। इसी से एक प्रकार की शराब भी बनाई जाती है। फल किडनी के आकार का होता है तथा थैलेमस के ऊपर जुड़ा हुआ सा लगता है।

काजू का गिरीदार अष्ठिफल होता है जो कि हरिताभ-खाकी रंग का होता है। इसकी फल त्वचा कड़ी, चिकनी एवं चमकीली होती है। इसमें भिलावा के समान एक रस भरा होता है। यह रस हवा में खुला रखने पर काले रंग का हो जाता है। इसे काजू का टार कहते हैं। अष्ठिफल के भीतर एक छिलके में लिपटी हुई रचना निकलती है, जिसे बाजार में काजू के नाम से बेचा जाता है। इसी को संपीड़ित करके एक प्रकार का स्थिर तेल प्राप्त किया जाता है।

काजू का तेल हल्के पीले रंग का होता है जिसमें मुख्य रूप से ओलिक अम्ल, लिनोलिक अम्ल, स्टियरिक अम्ल तथा पामिटिक अम्ल के ग्लीसरॉईड्स होते हैं।

आयुर्वेदानुसार काजू का तेल मधुर, उष्णवीर्य, वातशामक, मष्तिष्क, मष्तिष्क एवं नाड़ी को बल देने वाला, स्नेहन, अनुलोमन, वाजीकरण, मूत्रल, कुष्ठध्न, केश्य, वेदनास्थापन, रक्तशोधक तथा पित्तकारक होता है ।

काजू के तेल के औषधीय प्रयोग

सूखे मेवों के रूप में काजू का बहुत अधिक महत्व है। शीतकाल में बनाये जाने वाले शक्तिवर्द्धक पाक एवं लड्डूओं में काजू का बहुत अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है। शरीर में होने वाले अनेक रोगों में भी इसका प्रयोग किया जाता है, इसलिये औषधीय रूप से काजू का महत्व सर्वविदित है। इसी प्रकार से काजू से प्राप्त तेल के भी अनेक चमत्कारिक प्रयोग हैं जो शरीर की अनेक रोगों से रक्षा करता है तथा उत्पन्न रोगों को दूर भी करता है। काजू का तेल वसीय अम्लों से युक्त उत्तम औषधीय महत्व वाला तेल है। इसके कुछ औषधीय महत्व जो कि सरल, प्रभावी तथा हानिरहित हैं, उन्हें आपके लाभ के लिये यहां लिखा जा रहा है:-

जोड़ों के दर्द में- घुटनों में किसी भी कारण से उत्पन्न सूजन अथवा मोच आने पर इनसे होने वाली पीड़ा से बचने के लिये काजू का तेल बहुत लाभ करता है। लगभग 50 ग्राम काजू के तेल में 10-15 कली लहसुन की डालकर पर्याप्त रूप से पका कर कड़कड़ा लें। इसी में थोड़ी सी हल्दी छोटा चम्मच भर मात्रा में मिला दें। इस मिश्रण को आकड़े के पते पर चुपड़कर उस पते को हल्का सा सेक कर घुटने पर बांधने से उसका दर्द समाप्त हो जाता है। मोच आ जाने पर उस स्थान पर यही पत्ता बांधने से सूजन उतर जाती है तथा दर्द भी दूर हो जाता है।

वातकम्प में- जिस व्यक्ति के हाथ-पैर, सिर आदि में कम्पन होता हो, उन्हें नित्य एक पाव औटाये हुये दूध में सुबह के समय 5 बूंद काजू का तेल डालकर पीना चाहिये। कुछ दिनों तक नित्य इंस प्रयोग के करने से लाभ होता है।

मूत्र साफ न आने की स्थिति में- अनेक व्यक्तियों को मूत्र त्याग के समय बहुत कष्ट का सामना करना पड़ता है अर्थात् उन्हें कष्ट से मूत्र उतरता है अथवा रुक-रुक कर आता है अथवा बूंद-बूंद होता है। ऐसी किसी भी स्थिति में 4 बूंद काजू का तेल एक बताशे में डालकर अथवा कैप्सूल में भरकर जल के साथ लेना चाहिये। इस प्रयोग को नियमित सुबह एवं शाम के समय कुछ दिनों तक सम्पन्न करने से लाभ होता है तथा पेशाब बिना किसी कष्ट के खुल कर आने लगता है।

कुष्ठ रोग में- कुष्ठ रोग में काजू के तेल का चमत्कारिक प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिये एक चम्मच शहद में 4 बूंद काजू का तेल मिलाकर सुबह-शाम लेने से शीघ्र लाभ मिलने लगता है। इसके अलावा काजू के तेल में बराबर मात्रा में पीली कटेरी (सत्यानाशी) का तेल मिलाकर लगाने से लाभ होता है।

चेहरा साफ करने हेतु-मसूर की दाल का अत्यंत महीन पिसा हुआ चूर्ण काजू के तेल में मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को चेहरे पर लगायें। 15 मिनट पश्चात् चेहरा गर्म या गुनगुने जल से धो लें। ऐसा करने से चेहरा साफ एवं मुलायम हो जाता है, साथ ही 2-3 बूंद तेल खाण्ड में मिलाकर जल से लेना चाहिये।

केशों के हितार्थ- लगभग 100 ग्राम काजू के तेल में उतनी ही मात्रा में नारियल का तेल मिला दें। इस प्रकार 200 ग्राम मिश्रण तैयार हो जायेगा। इस मिश्रण में 4 फूल गुड़हल के पीसकर डाल दें। इसे इतना पकायें कि गुड़हल के फूल का सम्पूर्ण जल तत्व जल जाये। इसे छानकर रख लें। इस तेल को नित्य सिर में लगाने से बाल चमकीले, घने एवं स्वस्थ रहते हैं। गुड़हल को चाइना रोज तथा लेटिन में Hibiscus rosa sinensis कहते हैं।

काजू के तेल का विशेष प्रयोग

काजू के तेल में बराबर मात्रा में अरण्डी या सरसों का तेल मिला लें। इस मिश्रण में छोटी कटेली (Latin:Solanum xantho-carpum) के फल पीसकर डाल दें। यदि यह मिश्रण 200 ग्राम हो तो उसमें 30 ग्राम कटेली के फल डालें। फिर इसमें कन्धारी अनार के 30 ग्राम छिलके डालकर मिश्रण को खूब पकायें तथा छानकर शीशी में भरकर रख दें। इस मिश्रण से लिंग की मालिश करने से स्तम्भनकाल बढ़ता है। लिंग दृढ़ीकरण भी होता है।

काजू के तेल के चमत्कारिक प्रयोग

काजू के द्वारा भी ऐसे चमत्कारिक एवं उपयोगी प्रयोग किये जा सकते हैं जो आपकी समस्याओं का समाधान करने एवं कामनाओं की पूर्ति करने में मदद करते हैं। यह प्रयोग अत्यन्त सरल हैं और इनके करने में आनन्द की प्राप्ति भी होती है, इसलिये इन प्रयोगों को आप आसानी के साथ कर सकते हैं। यहां पर ऐसे ही कुछ विशेष प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है-

> शनि की साढ़ेसाती सभी व्यक्तियों के मन में भय उत्पन्न करती है। चूंकि यह साढ़ेसाती सभी मनुष्यों को अपने जीवनकाल में दो अथवा तीन बार भोगनी ही पड़ती है, इसलिये साढ़ेसाती के बारे में सभी लोग जानते हैं। अधिकांश लोगों का ऐसा मानना कष्टों से बचने के लिये अनेक प्रकार के उपाय बताये जाते हैं। इन्हीं में एक उपाय छायादान का भी है। इसके अन्तर्गत साढ़ेसाती से प्रभावित व्यक्ति एक कटोरी में सरसों का तेल डाल कर उसमें एक, दो अथवा पांच रुपये का सिक्का डालता है और फिर उस तेल में अपना चेहरा देखकर तेल शनि का दान लेने वाले डाकोत अथवा जोशी को दे देते हैं। अगर आप पर साढ़ेसाती चल रही है तो आप एक कटोरी में इच्छानुसार सरसों का तेल डालें, फिर उसमें 8-10 बूंदें काजू के तेल की डाल दें। कटोरी में श्रद्धानुसार सिक्का डालें और फिर उसमें अपना चेहरा देखकर दान कर दें। अगर आप यह प्रयोग प्रत्येक शनिवार को करते हैं तो ठीक हैं अन्यथा शुक्लपक्ष के प्रथम शनिवार को अवश्य करें। ऐसा करने से शनि महाराज की कृपा प्राप्त होगी।

> शनि की साढ़ेसाती में एक अन्य उपाय आप इस प्रकार भी कर सकते हैं-शनिवार को सवा मीटर काला नया वस्त्र लें। इसमें 125 ग्राम काले उड़द, 5 लोहे की कील एवं चाकू रख कर इनके ऊपर 10-12 बूंदें काजू के तेल की छिड़क कर पोटली बना लें और शनि का दान लेने वाले डाकोत अथवा जोशी को दान कर दें। श्रद्धानुसार नकद दक्षिणा भी दे सकते हैं। यह प्रयोग आप तब अवश्य करें जब आपको निरन्तर कष्टों एवं समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हो। इस उपाय को किसी भी शनिवार को कर सकते हैं।

> यह प्रयोग उन लोगों के लिये है जो कर्ज की समस्या से परेशान हों अथवा जिनका लिया हुआ कर्ज उतर नहीं पा रहा हो। अगर आप स्वयं का व्यवसाय करते हैं तो यह प्रयोग कार्यस्थल पर करें और अगर नौकरी करते हैं तो इसे घर पर करें। इस प्रयोग के अन्तर्गत आपको काजू के तेल का दीपक अपने आवास अथवा व्यवसाय स्थल पर लगाना है। दीपक काजू के तेल का जलायें तो ठीक है किन्तु यह महंगा होने के कारण समस्या आती है तो सरसों के तेल में काजू का तेल मिलाकर प्रयोग करें तब भी यही परिणाम प्राप्त होता है। इसके लिये 100 ग्राम सरसों का तेल तथा 10 ग्राम काजू का तेल एक शीशी में डाल कर मिला लें। इसमें साबुत नमक का एक छोटा डल्ला भी डाल दें। रूई की फूलबती बनाकर इस मिश्रण में डुबो कर पीतल के दीपक पर रख कर प्रज्जवलित करें। यह दीपक 5-7 मिनट तक जलेगा और इतना जलना ही पर्याप्त होगा। यह प्रयोग 40 दिन तक करें। तेल समाप्त हो जाये तो इसी अनुपात में और तैयार कर लें। दूसरी बार तेल तैयार करते समय इसमें नमक का नया डल्ला डालें। पहले वाले टुकड़े को पीपल वृक्ष के नीचे डाल दें। इस प्रयोग के बाद कर्ज उतरने के मार्ग बनने लगेंगे।

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    अनुक्रम

  1. जीवन का आधार हैं तेल
  2. तेल प्राप्त करने की विधियां
  3. सम्पीड़न विधि
  4. आसवन विधि
  5. साधारण विधि
  6. तेलों के सम्बन्ध में कुछ विशेष जानकारियां
  7. नारियल का तेल
  8. अखरोष्ट का तेल
  9. राई का तेल
  10. करंज का तेल
  11. सत्यानाशी का तेल
  12. तिल का तेल
  13. दालचीनी का तेल
  14. मूंगफली का तेल
  15. अरण्डी का तेल
  16. यूकेलिप्टस का तेल
  17. चमेली का तेल
  18. हल्दी का तेल
  19. कालीमिर्च का तेल
  20. चंदन का तेल
  21. नीम का तेल
  22. कपूर का तेल
  23. लौंग का तेल
  24. महुआ का तेल
  25. सुदाब का तेल
  26. जायफल का तेल
  27. अलसी का तेल
  28. सूरजमुखी का तेल
  29. बहेड़े का तेल
  30. मालकांगनी का तेल
  31. जैतून का तेल
  32. सरसों का तेल
  33. नींबू का तेल
  34. कपास का तेल
  35. इलायची का तेल
  36. रोशा घास (लेमन ग्रास) का तेल
  37. बादाम का तेल
  38. पीपरमिण्ट का तेल
  39. खस का तेल
  40. देवदारु का तेल
  41. तुवरक का तेल
  42. तारपीन का तेल
  43. पान का तेल
  44. शीतल चीनी का तेल
  45. केवड़े का तेल
  46. बिडंग का तेल
  47. नागकेशर का तेल
  48. सहजन का तेल
  49. काजू का तेल
  50. कलौंजी का तेल
  51. पोदीने का तेल
  52. निर्गुण्डी का तेल
  53. मुलैठी का तेल
  54. अगर का तेल
  55. बाकुची का तेल
  56. चिरौंजी का तेल
  57. कुसुम्भ का तेल
  58. गोरखमुण्डी का तेल
  59. अंगार तेल
  60. चंदनादि तेल
  61. प्रसारिणी तेल
  62. मरिचादि तेल
  63. भृंगराज तेल
  64. महाभृंगराज तेल
  65. नारायण तेल
  66. शतावरी तेल
  67. षडबिन्दु तेल
  68. लाक्षादि तेल
  69. विषगर्भ तेल

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